अपने ड्राइवर के रिटायरमेंट पर बाड़मेर के कलेक्टर ने किया कुछ ऐसा की देखकर भावुक हुआ पूरा देश!

आज हम आपको एक ही दिलचस्प और मन को मोह लेने वाली कहानी के बारे में बताने जा रहें हैं। जिसको सुनकर आप भी भावुक हो और यह सोचने पर मजबूर हो उठेगें कि आखिरकार अब भी इस दुनिया में थोड़ी इंसानियत बची है।

इस कहानी को जानने के बाद आप ऐसा सोच सकते हैं कि अब भी कुछ लोग ऐसे बचे जो किसी से हैसियत में बड़े होने के बावजूद अपने से छोटे लोगों को मान-सम्मान देने में कोई कमी नहीं रखते।

अपना रुतवा भुला अपने ड्राइवर को दिया ऐसा सम्मान

आपको बता दें कि आज हम आपको जो कहानी बताते जा रहें हैं वो राजस्थान के बाड़मेर की हैं। और यहां के जिस इंसान की बात हम कर रहे हैं वो कोई छोटे-मोटे इंसान नहीं बल्कि यहां के जिला कलेक्टर हैं। दरअसल बात कुछ ऐसी है कि जिला कलेक्टर ओमप्रकाश विश्नोई अपनी कार चलाने वाले सरकारी ड्राइवर मदनदास की रिटायरमेंट पर कुछ ऐसा किया कि मदनदास ने वो अपने सपने में भी नहीं सोचा होगा।

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कलेक्टर साहब का यह कारनामा छू लेगा आपका दिल

बता दें कि मदनदास के रिटायरमेंट पर कलेक्टर साहब ओमप्रकाश ने मदनदास को एक दिन का साहब बनाकर और खुद कार चालक बनकर उन्हें सम्मान दिया. कलेक्टर साहब ने मदनदास को गाड़ी में अपनी सीट पर बिठाया और खुद ड्राइव करके उन्हें घर तक छोड़कर आये. कलेक्टर साहब से इतना सम्मान पाकर मदनदास भावुक हो गये. अपने रिटायरमेंट पर अपनी ऐसी विदाई पाकर मोहनदास ने बहुत ही सम्मानित महसूस किया।

खुद गाड़ी चलाकर अपने ड्राइवर को मान-सम्मान से छोड़ा घर

आपको बता दें कि इतना सम्मान पाना मोहनदास का हक भी था। उन्होंने 40 साल तक कलेक्टर साहब की निष्ठा भाव से सेवा की। अपने साहब के आने पर कार की गेट खोलना और उन्हें सम्मानपूर्वक बिठाना 40 साल से मोहनदास की आदत में शुमार हो चुका था और जब उनके साहब ने उनके बैठने के लिए कार का दरवाजा खोला तो यह पल उन्हें भावुक कर दिया।

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गाड़ी को सजवाकर फिर दी विदाई

कलेक्टर साहब के इस सोच की सिर्फ बाड़मेर में ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चा हो रही है. बता दे कि कलेक्टर साहब ने पहले अपनी कार को अपने सरकारी आवास पर फूलों से सजवाया. फिर खुद कार चलाकर मदनदास को उनके घर तह छोड़ा. जैसे ही कलेक्टर साहब मदनदास को लेकर उनके घर पहुंचे मदनदास का पूरा परिवार खुशी से झूम उठा.

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ओमप्रकाश विश्नोई ने कहा

ओमप्रकाश विश्नोई ने मिडिया से बातचीत करते हुए कहा कि, ‘मदनदास जी ने 40 साल तक कलक्ट्रेट में सेवाएं दी हैं. मदनदास जी के साथ मेरा लगाव इतना था कि कभी ऐसा नहीं लगा कि वे मेरे ड्राइवर हैं. वे हमेशा परिवार के एक सदस्य की तरह रहे. इसी लगाव के कारण उन्हें ड्राइवर बनकर घर पहुचाने आया हूं. मदनदास ने हमेशा अफसरों को सुरक्षित मंजिल तक पहुंचाने की सेवा का बखूबी निर्वहन किया है. ऐसे में वे यह तोहफा पाने के हकदार थे.’

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