राजकुमारी के साथ आने वाली दासियों के साथ किया जाता था इतना घिनौना काम सुनकर रूह कांप उठेगी 😭..

आज आपको हम बताने जा रहे हैं उस जमाने के बारे में जिसमे राजा महाराजा राज करते थे राजा महाराजाओं के समय में बहुत सी कुप्रथाएं प्रचलित थी जो आज के समय में खत्म ही कर दी गईं हैं ।इनके महलों में सैकड़ों दास दासियां होते थे पर ये दास दासियां कहां से आते थे क्या आप इस बात को जानते हैं?

इन दास दासियों को खरीदा और बेचा भी जाता था और कई दास दासियां उपहार स्वरूप राजा महाराजाओं को प्रदान किए जाते थे और कई दासियां शादी त्योहार होने पर रानियों के साथ भी भेजे जाते थे इन दास दासियों को राजा रानी अपनी बेटियो के साथ उनकी सुरक्षा और उनकी सेवा के लिए दिया जाता था और इनके साथ जो होता था आज इस लेख के माध्यम से हम आपको यही बताने जा रहे हैं।

राजाओं के शान शौकत भरे महलों में दास दासियों की भरमार होती थी . रानियों और राजाओ के कार्य करते थे .युद्ध के दौरान जब कोई राजा दुसरे राजा को हराकर उसके राज्य पर जीत हासिल करता था .हारे हुए राजा का धन और राज्य पर उस राजा का अधिकार हो जाता था .जीत हासिल कर जब राजा अपने महल वापिस जाता था तो अपने साथ हारे हुए राजा की रानी और उनकी दासियों को भी अपने महल ले जाते थे . राजा -महाराजा महल की स्त्रियों की शिक्षा और दीक्षा का पूरा पूरा ध्यान रखते थे और शिक्षा का प्रबंध महल के अंदर ही करवाते थे ताकि उन्हें किसी समस्या का सामना ना करना पड़े . और इस बात का खास ध्यान रखा जाता था कि रानी के साथ रहने वाली दासिया सुशिक्षित होने के साथ -साथ युद्ध कला में निपुण भी हो .ताकि राजा रानी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

युद्ध में हारने वाले राजाओं के महलों का सब सामान जीतने वाले राजा के पास भेज दिया जाता था युद्ध में हारे हुए राजपरिवार के पुरुष सदस्यों को हिन्दू राजा छोड़ देते थे या जेल में डाल देते थे .और रानी को अपने हरम महल की शोभा बना देते थे , जबकि मुस्लिम सुलतान हारे हुए पुरुष राजपरिवार के सदस्यों को जनता के सामने इतनी दर्दनाक मौत देते थे की देखने वाले की रूह काँप जाये, बलबन और अलाउद्दीन खिलजी ने जाटों को युद्ध में हराकर उनके सिरों को काटकर २०-३० फिट ऊंची दीवारें बनवायी थीं.मुस्लिम सुल्तान पाशविक नरहत्या करते थे।

औरतें अपनी इज्जत के लिए दे देती थी अपने प्राणों की बलि

दासियों से लेकर महारानी तक को राजदरबार में सुल्तान के फरमान के द्वारा बुलाया जाता था , महारानी और राजकुमारियों को सुल्तान की सेवा में लगा दिया जाता था और शेष को घुड़सवारों, पैदल सेना में बाँट दिया जाता था.जब हिन्दू स्त्रियों की स्थिति क्षीण हो जाती थी तो उन्हें बाजारों में हथकड़ी लगाकर अर्धनग्न करके उनकी बोली लगवाई जाती थी, अतः हारे हुए हिन्दू राजपरिवार की स्त्रियां आग में कूद कर पहले ही जान दे देती थीं. ताकि उनकी इज्जत को सरे आम बेआबरू ना किया जाए


दास दासियां करते थे इस तरीके के कार्य


राजा महाराज महल की स्त्रियों की शिक्षा की व्यवस्था महल में ही करवातेरहते थे ताकि रानी और राजकुमारी के साथ जो दासियाँ लगाई जातीं थी वह अत्यंत सुशिक्षित, युद्ध कला में निपुण हो , जिससे राजकुमारियों पर अच्छा प्रभाव पड़े.विवाह उपरांत राजकुमारी के साथ बहादुर, बुद्धिमान एक या दो दासियों को भेजा जाता था .जो राजकुमारी के जीवन की रक्षा कर सकें क्योंकि राजपरिवार में षड्यंत्र बहुत रचे जाते थे .इन दासियों का कार्य राजकुमारी को शासन के कार्यों से सम्बन्धी सूचनाएं प्रदान करना होता था और पुत्र उत्तराधिकार प्राप्त करेगा या नहीं. इन दासियों को आजीवन अविवाहित रहना होता था और अपनी राजकुमारी और उनके पुत्रों के जीवन की रक्षा करना होता था. पन्ना धाय और मंथरा प्रमुख हितैषी दासियाँ थीं इन दासियों को राजकुमारियों के विवाह के बाद मुख्य रूप से इन्ही उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भेजा जाता था

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