हजारों साल पुरानी खोपड़ी में लगा मिला मेटल रिसर्चर्स ने बताया उस समय कैसे हुई होगी इस तरह की क्रिटिकल सर्जरी…

अमेरिका के ओकलाहोमा में अस्थि विज्ञान का संग्रहालय मौजूद है यहां एक ऐसी कंकाल की खोपड़ी पाई गई है जिसके बारे में बताया जा रहा है कि यह खोपड़ी किसी योद्धा की थी जो करीब 2000 साल पहले चोटिल हुआ था जिसकी खोपड़ी में फ्रैक्चर भी हुआ था इसके बाद इस खोपड़ी की सर्जरी एडवांस तरीके से 2000 साल पहले हुई थी आइए आपको बताते हैं कैसे हुई थी 2000 साल पहले इतनी एडवांस सर्जरी..

लेखक जॉन वेरानो की किताब होल्स इन द हेड आर्ट एंड आर्कियोलॉजी ऑफ trepanation इन ancient Peru मैं भी ऐसा दावा किया गया है उन्होंने कहा था कि पेरू के सर्जन एक सिंपल टूल से खोपड़ी में छेद करके जिंदा आदमी की खोपड़ी का ऑपरेशन करते थे।

इस खोपड़ी में एक अलग तरह का मेटल है माना जा रहा है कि इस शख्स की खोपड़ी में यह मेटल सर्जरी के दौरान लगाया गया था वहीं यह भी समझा जा रहा है कि इस सर्जरी के बाद यह शख्स जिंदा भी रहा था यह लंबी खोपड़ी पेरू के रहने वाले शख्स की है।

युद्ध से लौटने के बाद शख्स ने अपने गंभीर चोट की सर्जरी करवाई थी हालांकि अगर किसी की खोपड़ी टूट जाए तो इससे अपंगता या मृत्यु तक हो सकती है ऐसे में पेरू के सर्जन ने हजारों साल पहले किसी धातु को खोपड़ी में लगाकर शख्स की जान बचाई थी स्केलेटन म्यूजियम ऑफ ओस्टियोलॉजी में मौजूद विशेषज्ञों ने भी माना कि शख्स की जान इससे बच गई थी लेकिन इस खोपड़ी को लेकर कई रहस्य बरकरार है डेली स्टार को स्केलेटन म्यूजियम ऑफ ओस्टियोलॉजी के प्रवक्ता ने बताया कि हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि यह कौन सा धातु है सामान्यता इसके लिए सिल्वर या गोल्ड का उपयोग होता था।

लेखक Verano की किताब Holes in the Head: The Art and Archaeology of Trepanation in Ancient Peru में इस बात का जिक्र है. उन्‍होंने नेशनल जियोग्राफिक से बात करते हुए कहा था कि पेरु के सर्जन एक सिंपल टूल से खोपड़ी में छेद कर जिंदा आदमी की खोपड़ी का ऑपरेशन करते थे. तब आज की तरह एनेस्‍थेसिया या किसी और दूसरी दवा का सहारा नहीं लिया जाता था. यानि बेहोश नहीं किया जाता था. Verano ने कहा कि इस तरह से कई लोगों की जिंदगी तब बचाई गई.

साइंस न्यूज़ से बात करते हुए कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के जैव पुरातत्वविद मैथ्यू बेलास्को ने बताया कि ऐसा लगता है कि यह आर्टिफिशियल बढ़े हुए सर उस समय प्रतिष्ठा के प्रतीक थे जिसमें बच्चों के सिर को कपड़ों से बांध दिया जाता था या सिर को लकड़ी के टुकड़ों के बीच बांधा जाता था।