एक कमरे में 7 भाई-बहनों संग रहकर यूपीएससी में टॉप की सब्ज़ी वाले की बेटी! प्रेरणादायी हैं इस गरीब बेटी की कहानी

भारत में गरीबी की संख्या बहुत ही ज्यादा हैं. ज्यादातर लोग भारत में गरीबी से जूझते रहते हैं. लेकिन यह भी मानाने वाली बात हैं कि यहाँ के लोग बहुत ही हिम्मती भी होते हैं. भारत में व्यक्ति कितना भी गरीब क्यों ना हो मन से वो बहुत ही हिम्मती और आत्मविश्वाशी होते हैं. ऐसे ही एक हिमम्ती और उम्मीद से भरे गरीब परिवार की एक कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं. जिसने अपने मेहनत और लगन के बल बुते देश को एक आईएएस ऑफिसर दिया हैं. आइये जानते हैं इस परिवार की दिल छू लेने वाली कहानी।

बेटी ने सच कर दिखाया अपने पिता का सपना

आज हम आपको जिस गरीब परिवार से रूबरू करने जा रहे हैं. उन्होंने अपनी मेहनत और हिम्म्मत से अपने बेटी को आईएएस अफसर बना दिया। इस बेटी ने भी हार ना मानते हुए अपनी मेहनत और आत्मविश्वाश से अपने परिवार के साथ-साथ अपने जिले का भी नाम रौशन किया। और उन सभी के लिए प्रेरणा की श्रोत बन गई जो अपनी हालात और मुश्किलों से हारकर सपने देखना छोड़ देते हैं. आईये जानते हैं इस कहानी को विस्तार से.

ठेले पर सब्ज़ी बेच बेटी को बनाया आईएएस

आपको बता दे कि यह कहानी राजस्थान के एक परिवार की हैं. इस परिवार में कुल 7 सदस्य हैं. इस परिवार के मुखिया गोविन्द पिछले 25 साल से ठेला पर सब्जी बेचकर अपने परिवार का गुजरा चलाते हैं. गोविंग के 5 बच्चें हैं. जिनमें सबसे बड़ी इनकी बेटी दीपेश कुमारी हैं. दीपेश के पिता ने अपने बच्चों के लिए सपना देखा था कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी करें और अपने पिता का नाम रौशन करें।

टॉप-100 में बनाई अपनी जगह

बता दे कि गोविन्द का यह सपना उनकी बेटी दीपेश ने सच कर दिखाया। दीपेश ने अपनी लगन से यूपीएससी की परीक्षा पास की. दीपेश ने यह परीक्षा 93वीं रैंक के साथ पास की. इसका मतलब यह हैं कि दीपेश ने इस परीक्षा में 100 रैंक के अंतर्गत जगह बनाई हैं. इस परीक्षा को करने के साथ के दीपेश ने अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने जिला और राज्य का भी नाम रौशन किया हैं.

एक ही कमरे में 7 भाई-बहनों संग रह किया तैयारी

बता दे कि इस कठिन परीक्षा को पास करने वाली दीपेश ने अपने निजी ज़िंदगी में भी काफी कठिन समय बिताया हैं. दीपेश अपने परिवार के साथ एक कमरे वाले घर में ही रहकर इस कठिन परक्षा के लिए कठिन मेहनत की. जो शायद हर किसी के बस की बात नहीं हैं.

गरीबी को नकार हिम्मत के बल बूते बनी आईएस

आपको जानकर हैरानी होगी कि जब गोविंद को अपनी बेटी के रिजल्ट के बारे में पता चला तब भी वो हमेशा की तरह आप ठेला लेकर सब्ज़ी बेचने निकल गए। जब गोविन्द सब्ज़ी बेच रहे थे तब बहुत से लोगों ने उन्हें सब्ज़ी बेचते देख लिया। फिर क्या था सभी ने उन्हें बधाईयाँ दी और ढेरों शुभकामनायें भी दी. यह कहानी हमें यह सिख देती हैं कि जीवन में सुख-दुःख आते ही रहते हैं हमें हार नहीं माननी चाहिए।

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