माँ के बलिदान की सैकड़ों कहानिया आपने सुनी होंगी पर कभी ऐसा सुना हैं की अपनी बेटी की परवरिश के लिए 30 साल तक पुरुष बनकर जीती रही महिला। हम आपको आज जो सच्ची घटना के बारे में बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आपका सर एक माँ के सम्मान में अपने आप झुक जाएगा।
हमें इस दुनिया में लाने,हमारे पालन पोषण और बच्चे को कामयाब बनाने के लिए माँ अपनी क्षमता से भी ज़्यादा अपने शिशु के लिए करती हैं। माँ के हर काम अपने बच्चे के हित के लिए होता हैं और अपने बच्चे के ऊपर आने वाले हर एक संकट को माँ अपने ऊपर ले लेती हैं और अपने बच्चे पर कोई आँच भी नही आने देती।
आपने फ़िल्म KGF का वो डाइयलोग तो सुना ही होगा की “दुनिया का सबसे बड़ा योद्धा माँ होती हैं” । माँ अपने बच्चे की ख़ुशी के लिए अपनी हर एक ख़ुशी त्याग देती हैं । अगर बच्चे के सर से पिता का साया उठ जाए तो माँ अपने बच्चे का बाप तक बन जाती हैं।ऐसी ही एक माँ के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं जिसके बारे में सुनकर आपका सर सम्मान से उनके लिए झुक जाएगा।
अपने पति की मौत के बाद अपनी बेटी की परवरिश के लिए ये माँ स्त्री से पुरुष बन कर जीती हैं ताकि उसकी बच्ची पर कोई आँच ना आये और वो अपनी बच्ची को एक अच्छा जीवन दे पाए।
आख़िर क्यूँ अपनी बेटी की परवरिश के लिए 30 साल तक पुरुष बनकर जीती रही ये महिला…?
स्त्री के लिए इस दुनिया में निर्वाह कर पाना हमेशा से ही कठिन रहा हैं पर अगर बात एक ऐसी स्त्री की हो जिसके शादी 20 साल की उम्र में कर दी जाये और उसका पति शादी के 15 दिन बाद ही मर जाए और इतनी छोटी सी उम्र में विधवा का कलंक लग जाने के बाद में जीवन गुज़ारना कितना कठिन होता होगा ये हम सोच भी नही सकते।
जी हाँ ऐसा ही कुछ हुआ जिला थूथुकुड़ी के काटुनायक्कनपट्टी गांव में रहने वाली 20 साल की एक लड़की पेचियम्मल के साथ में, कम उम्र में शादी हो जाने के 15 दिन बाद ही पति की हार्ट अटैक से मौत हो जाती हैं और महज़ 20 साल की उमर में ही पेचियम्मल के ऊपर विधवा होने का कलंक लग जाता हैं।
कम उम्र की इस विधवा को देखकर कुछ वेग़ैरत मर्द अपना मौक़ा तलाशने लगे और पेचियम्मल के साथ उनका वर्ताव ना-क़ाबिले तारीफ़ था।जिसकी बजह से पेचियम्मल को काम करने में दिक़्क़त आ रही थी पर पापी पेट का सवाल था और अपने बच्ची का पेट भी पालना था तो फिर पेचियम्मल ने खुद को स्त्री की जगह पुरुष की तरह रखना सुरु कर दिया और अपनी बेटी की परवरिश के लिए 30 साल तक पुरुष बनकर जीती रही महिला जिससे की उनकी अस्मिता पर आँच भी ना आए वो बिना किसी दख़लअंदाजी के अपना घर भी चला सकें।
अपनी बेटी की परवरिश के लिए 30 साल तक पुरुष बनकर जीती रही ये महिला
इसके बाद पेचियम्मल क़रीब तीस साल तक पुरुष बन कर रही।उन्होंने अपने बाल कटवा लिए और साड़ी छोड़कर लूंगी और शर्ट पहनना शुरू किया।उन्होंने अपना पेट पालने के लिए आस पास के ग़ांव में जाकर वो सारे काम किए जो आम तौर पर औरतें नही कर सकती थी यहाँ तक की उन्होंने अपने सारे दस्तावेज़ो में अपना नाम बदलवा कर मुत्थु कुमार करवा लिया।
एक क्षेत्रीय समाचार पत्र के अनुसार उन्हें ज़्यादातर लोग मुत्थु मास्टर के नाम से ही जानते हैं। उनका पुरुष बनने का ये फ़ैसला बहुत ही साहसिक था पर अपनी बेटी की अच्छी परवरिश के लिए उन्होंने ये सब किया जिसमें उन्हें काफ़ी परेशानियों का भी सामना करना पड़ा।
पुरुषों का ही टॉयलेट करती थी इस्तेमाल
पेचियम्मल ने मीडिया से बात करते हुए बताया की उन्होंने पेंटिंग की दुकान से लेकर नारियल का ठेला तक लगाया यहाँ तक कि चाय पराँठे की दुकान तक पर काम किया।किसी को उनका महिला होने का शक ना हो जाए इसलिए वो पुरुषों का टॉयलेट इस्तेमाल करती थी और वह बस में पुरुषों वाली सीट पर ही बैठती थीं।
उन्होंने बड़ी मेहनत से अपनी बेटी का पालन पोषण किया हैं।ग़नीमत हैं की अब उनकी बेटी की शादी हो चुकी हैं और अब पेचियम्मल, मत्थु कुमार बनकर ही अपना जीवन यापन करना चाहती है और आख़िरी साँस लेना चाहती हैं। उन्हें अपनी बेटी की परवरिश के लिए अपनी पहचान बदलने का भी कोई गम नहीं है। गांव में कुछ लोगों के अलावा किसी को नहीं पता था कि मुत्थु असल में एक महिला है।
अपने बच्चों की परवरिश के लिए ऐसा त्याग सिर्फ़ एक माँ ही कर सकती हैं ए माँ तुझको मेरा नमन।
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