आधुनिक जमाना आधुनिक तरीके की मशीनों से और आधुनिक आइडियाज से चल रहा है ऐसे में हर कोई चाहता है कि उसका खुद का बिजनेस हो और सब बड़े काम से ही शुरुआत करना चाहते हैं सब को बड़ी ही तनखा चाहिए लेकिन ऐसे लोग भूल जाते हैं कि छोटा काम भी आखिरकार काम ही होता है और हम वेस्ट में से भी गोल्ड निकाल सकते हैं ऐसा ही कुछ साबित करके दिखाया है वाराणसी के दो दोस्तों ने जिन्होंने अपनी नॉलेज और टैलेंट के दम पर पड़े फूलों से भी एक बहुत अच्छा आईडिया निकाल लिया जिससे आज वह कमा रहे हैं करोड़ों फूलों को नदी में फेंक ता देख दोनों दोस्तों के दिमाग में ऐसा विचार आया जिसने उनकी जिंदगी को बदल कर रख लिया इन फूलों को इकट्ठा करके कूड़ेदान में फेंक कर उन्होंने एक कंपनी शुरू की आज इस कंपनी का मौजूदा कारोबार लगभग 2 करोड रुपए सालाना है।
हेल्प अस ग्रीन है कंपनी का नाम
दोनों दोस्तों ने हेल्पसग्रीन से एक कंपनी शुरू की हेल्प अस ग्रीन के संस्थापक अंकित अग्रवाल ने एक हिंदी अखबार को बताया कि कानपुर से 25 किलोमीटर दूर भौंटी गांव में उनका ऑफिस है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान के तहत शहर के 29 मंदिरों से दिल्ली करीब 800 किलो फेंके गए फूलों को इकट्ठा कर अगरबत्ती और जैविक वर्मी कंपोस्ट में बदला जाता है इसमें खर्चा भी कम आता है।
करने गए थे दर्शन स्नान
अंकित ने जानकारी दी कि वे अपने दोस्त के साथ सन 2014 में बिठूर में मकर संक्रांति के दिन गंगा तट पर बने मंदिरों के दर्शन करने गए थे लोगों को गंगा के किनारे सड़े गले फुल फेंकते और उससे प्रदूषित नदी का पानी पीते हुए देखा जिसे बड़ा बुरा भी लगा और उनके मित्र ने गंगा की ओर देखते हुए उनसे कहा तुम लोग इसके लिए कुछ भी क्यों नहीं करते हो तभी उनके मन में यह ख्याल आया कि कुछ ऐसा करें जो नदियों को प्रदूषित करने से बचाए।
पुरानी नौकरी छोड़ लग गए इस काम में
इसके बाद हमने गंगा तट पर शपथ ली कि हम बेकार फूलों को गंगा में नहीं बहाने देंगे दोनों दोस्तों अंकित और करण ने अपनी पुरानी नौकरी छोड़ दी और सन 2015 में ₹72000 की कम पूंजी के साथ हेल्पसग्रीन कंपनी शुरू कर दी इस दौरान उन्हें जानने वाले लोग उन्हें दीवाना कह रहे थे भक्तों को कूड़ेदान में फूल फेंकना मुश्किल हो गया हेल्पर्स ग्रीन ने तुलसी के बीज से बने कागज की अगरबत्ती को बेचना शुरू किया।
उनकी कंपनी 20,000 वर्ग फुट में फैली हुई है। यहाँ अगरबत्ती (Agarbatti) भी बनाई जाती है। कानपुर, कन्नौज और उन्नाव के अलावा कुछ और जगहों पर भी उनका कारोबार फैल गया है।उनकी कंपनी ‘Help Us Green’ में 70 से अधिक महिलायें काम कर रही है। महिलाओं को रोजगार देने का यह अध्भुत कार्य भी हुआ है और उन्हें प्रतिदिन 200 रुपये का मेहनताना दिया जाता है। उनकी कंपनी का हालिया समय में सालाना 2 करोड़ रुपये से अधिक कमा रही है।