महारानी एलीजाबेथ II के ताज में लगा भारत के कोहीनूर की क्या हैं कहानी और खासियत, आइये जाने

महारानी एलीजाबेथ II के ताज में लगा भारत के कोहीनूर की क्या हैं कहानी और खासियत, आइये जाने

जब भी ब्रिटेन और भारत से सबंधित कोई घटना घटती हैं तब-तब कोहीनूर हीरों के भी चर्चे तेज हो जाते हैं. हाल ही में इसकी चर्चा एक बार और उठ खड़ी हुई हैं. 8 सितम्बर को ब्रिटेन की महारानी एलीजाबेथ II का 96 साल की उम्र में निधन हो गया. जिसके बाद से कोहीनूर के बारे में बाते तेज होने लगी. आखिर क्या हैं कोहीनूर की कहानी और उसका क्या सम्बन्ध हैं भारत से. आइये इसके बारे में हम आपको आगे की पोस्ट में बताएगें.

आपको बता दे ब्रिटेन की महारानी के ताज में लगा ये कोहीनूर हीरा ब्रिटेन का नहीं बल्की हमारे भारत देश का हैं. लेकिन इस पर दावे ब्रिटेन के साथ-साथ पाकिस्तान और अफगानीस्तान भी करते हैं. महारानी के ताज में लगा यह हीरा भारत के कई शाही खानदानों से होकर ब्रिटेन के पास गया था. दुनिया का सबसे खुबसूरत और कीमती हीरा “कोहीनूर” के लिए ना जाने कितने लोगों की खून बहाई गई हैं.

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मुग़ल काल से मिलती हैं इसकी जानकारी

इतिहासकारों के मुताबिक कोहिनूर हीरा कई सदी पहले भारत के तमिलनाडु में स्थित कृष्णा नदी के किनारे स्थित ‘कोल्लूर खदान’ से निकला गया था. मुगल वंश के सस्थापक ‘बाबर’ के एक किताब के मुताबिक जब अलाउद्दीन खिलजी ने भारत के दक्षिणी राज्‍यों पर आक्रमण किया, तब उसके हाथ यह कोहीनूर हीरा लगा। इसके बाद यह हीरा बाबर के हाथ लगा जब उसने पानीपत की लड़ाई में दिल्‍ली और आगरा को जीत लिया. हालांकि, कोहिनूर के शुरुआती इतिहास को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग दावे हैं.

मुगल काल से पहले कोह‍िनूर हीरे के बारे में कोई पुख्‍ता जानकारी नहीं हैं. कोहीनूर हीरे के बारे में  पहला लिखित साक्ष्य 1750 के आसपास मिलता है जब मुगलों की राजधानी दिल्‍ली पर फारसी शासक नादिर शाह ने धावा बोला था। नादिर शाह ने आक्रमण कर मुगलों का पूरा ख़जाना लूट लिया और मुगलों का हीरों से बना ताजमुकुट भी अपने साथ ले गया जिसमे कोहीनूर हीरा लगा था. इसके बाद जब 1747 में नादिर शाह मारा गया तब कोह‍िनूर हीरा उसके पोते के पास आ गया और उसने इस हीरे को 1751 में अहमद शाह दुर्रानी को दे दिया जो अफगान साम्राज्‍य का संस्‍थापक था.

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इसके बाद जब 1809 में शाह शुजा जो कि अहमद शाह दुर्रानी का पड़पोता था, अफगानिस्‍तान पर शासन कर रहा था. तभी रूस ने अफगानिस्‍तान के इलाके पर नजर गड़ाई. रूस की मंशा देखकर शाह शुजा ने ब्रिटेन से हाथ मिला लिया।  लेकिन कुछ समय के बाद ही  शाह शुजा की गद्दी छीन गई और उसे अफगानीस्तान छोड़ कर भागना पड़ा.

तौफे में कोहीनूर मिला था महाराजा रणजीत सिंह को

वहां से भागने के बाद शाह शुजा लाहौर पंहुचा जहाँ, महाराजा रणजीत सिंह का राज़ था. महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर में शाह शुजा की मेहमाननवाजी करने के बदले उससे कोहिनूर हीरा मांग लिया. महाराजा रणजीत सिंह, सिख साम्राज्‍य की नींव रखने वाले ‘शेर-ए-पंजाब’ थे. महाराजा रणजीत सिंह ने कोहिनूर को अपने पगड़ी में लगा रखा था. जब साल 1839 में महाराजा रणजीत सिंह कि मृत्यु नज़दीक थी तब उन्होंने अपने सबसे बेटे खड़क सिंह को उत्‍तराधिकारी नियुक्‍त किया था. उनकी मृत्यु से एक दिन पहले (26 जून 1839) दरबारियों में कोहिनूर को लेकर जंग छिड़ गई और आखिर में यह तय कि गई कि खड़क सिंह को ही कोहिनूर दिया जाएगा.

जम्मू के शासक के भी हाथ आया था कोहीनूर

अक्‍टूबर 1839 में जब खड़क सिंह ने गद्दी संभाली तब उसके प्रधानमंत्री धियान सिंह ने उसके खिलाफ बगावत कर दी। और इसके बाद  कोहिनूर धियान सिंह के भाई और जम्‍मू के राजा गुलाब सिंह के पास चला गया.  फिर जनवरी 1841 में गुलाब सिंह ने कोहिनूर को तोहफे के रूप में सिख साम्राज्य के महाराजा शेर सिंह को दे दिया. 15 सितंबर 1843 को शेर सिंह और उनके भाई धियान सिंह की तख्‍तापलट में हत्‍या कर दी गई और फिर धियान के बेटे दलीप सिंह को गद्दी पर बैठाया गया. अब कोहीनूर के जिम्मेदारी दलीप सिह की थी.

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सिखों से अंग्रजो के हाथ गया कोहीनूर

18 शताब्दी में भारत ब्रिटिश साम्राज्‍य का  उपनिवेश था और 1843 के करीब भारत के वायसराय लॉर्ड डलहौजी था. लॉर्ड डलहौजी को जब कोहीनूर के बारे में पता चला तब से उसकी नजर कोहिनूर पर थी।फिर सिखों और ब्रिटिश ईस्‍ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ाई छिड़ी और इस लडाई में सिख साम्राज्‍य की हार हुई और फिर सिख साम्राज्‍य पर अंग्रेजों का कब्‍जा हो गया. इस लड़ाई का अंत 1849 की लाहौर संधि से हुई.  इसी संधि के तहत, महाराजा दलीप सिंह ने कोहिनूर हीरा ‘तोहफे’ के रूप में महारानी विक्‍टोरिया को दिया.  फिर फरवरी 1850 में कोहिनूर हीरे को एक तिजोरी में बंद करके HMS मेदेआ पर लादा गया और इंग्‍लैंड पहुंचाया दिया गया.

ईस्‍ट इंडिया कंपनी के डिप्‍टी चेयरमैन ने औपचारिक रूप से 3 जुलाई 1850 को बकिंगम पैलेस में महारानी विक्‍टोरिया के सामने कोहिनूर हीरा पेश किया. 1851 में लंदन के हाइड पार्क में कोहिनूर को आम जनता के देखने के लिए रखा गया.

कोहीनूर की कीमत

कोहीनूर हीरे के कीमत की बात करें तो वर्तमान में इसकी कीमत लगभग 150 हज़ार करोड़ रूपये हैं.

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