भैंसा चराने से लेकर मंदिर के बल्ब की रोशनी में पढ़कर IAS बनने तक का कैसा रहा मिंटू का सफ़र..

राजस्थान के दौसा जिले के वासी मिंटू लाल की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। मिंटू के माता-पिता खुद अनपढ़ थे और लगभग 5 वर्ष की उम्र तक छोटा मिंटू भी अपने माँ-बाप के साथ भैंस चराया करता था। जब मिंटू 6 वर्ष का हुआ तो उसकी माँ ने उसे स्कूल जाने को कहा। शुरू में तो मिंटू को स्कूल जाने से बहुत डर लगता था।

माँ जबर्दस्ती स्कूल छोड़ कर आती थी

इस वजह से मिंटू की माँ उन्हें मारते और डांटते हुए स्कूल छोड़ कर आती थीं। उस समय मिंटू को यह मालूम भी नहीं था कि पढाई और किताब कितने जरुरी हैं। आर्थिक रूप से बेहद कमजोर मिंटू की कहानी कुछ ऐसी थी कि उन्हें जल्द से जल्द अपने परिवार की स्तिथि को सुधारने के लिए एक नौकरी की आवश्यकता थी।

सिविल सेवा से परिचय

आपको बता दें कि जब मिंटू थोड़े बड़े हुए तो अपने बड़े भाई की वजह से उन्हें सिविल सेवकों के बारे में पता चला और तभी मिंटू ने यह ठान लिया था कि उन्हें भी इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर एक सम्मानित अफसर बनना है। लेकिन यह राह काफी कठिन थी। आप मिंटू के परिवार की समस्याओं का अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि मिंटू के घर में बिजली तक नहीं थी।

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मंदिर के बल्ब के नीचे की पढ़ाई

पढाई करने के लिए या तो उन्हें केरोसिन की मदद से डिबिया या लालटेन जलाना होता था या वह अपने घर से कुछ दूरी पर स्थित एक माता के मंदिर में लगे बल्ब के नीचे बैठ कर पढाई करते थे। 10वीं कक्षा तक सरकारी स्कूल से पढाई करने के बाद जब उन्होंने 12वीं की परीक्षा पास की तब परिवार की मदद करने के लिए उन्होंने पटवारी की नौकरी कर ली।

सच्चे दोस्तों ने दिया साथ

लेकिन उनका ध्यान अभी भी सिविल सर्विस पर ही था। इसके लिए मिंटू को नौकरी छोड़ दिल्ली आना था लेकिन आर्थिक स्तिथि खराब होने की वजह से वह संकोच में थे। बाद में अपने दोस्तों के सहयोग की बदौलत वह दिल्ली आये और तैयारी प्रारम्भ की। अपने पहले ही प्रयास में वह सिविल सेवा की परीक्षा के साक्षात्कार तक पहुँच गए।

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आई.आर.एस मिंटू

इस बात से उनका आत्मविश्वास और भी ज्यादा बढ़ गया। अगले वर्ष 2018 में उन्होंने फिर से कोशिश की और सफल रहे। उन्हें 664वां रैंक प्राप्त हुआ था। जिसके बाद वह एक आईआरएस अफसर बने और अपने परिवार की स्तिथि को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया।

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