मॉउंट एवरेस्ट की ऊंचाई माउंट कैलाश से काफी ज्यादा हैं. दोनों के बीच की ऊंचाई में 2000 से अधिक मीटर का अंतर हैं. जहाँ एक और मॉउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 मीटर हैं वहीं माउंट कैलाश की ऊंचाई 6638 मीटर हैं. मॉउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सबसे पहले एडमंड हिलेरी और तेंजिन शेरपा ने साल 1953 में फतह हाशिल की थी. इन दोनों के बाद अब तक कुल 4000 लोगों ने मॉउंट एवरेस्ट पर फतह हाशिल किया हैं.
आखिर क्यों मॉउंट एवरेस्ट से ऊंचाई कम होने के बावजूद माउंट कैलाश पर कोई भी चढ़ नहीं पाया?
आखिर ऐसी क्या वहज हैं कि मॉउंट एवरेस्ट से ऊंचाई कम होने के बावजूद माउंट कैलाश पर कोई भी चढ़ नहीं पाया हैं. आइए जानते हैं इसके रहस्य के बारे में.
कैलाश पर्वत पर ना चढ़ पाने की वहज
बता दे कि कैलाश पर्वत पर ना चढ़ पाने की वजह के बारे में अलग-अलग लोगों के अलग-अलग विचार हैं. धार्मिक लोगों के मुताबिक कैलाश पर भगवान शिव का वाश है. इसलिए वहाँ कोई भी नहीं जा पाता। वहीं जो लोग विज्ञान में यकीन रखते है उनका इस पर्वत पर ना चढ़ पाने का कारण कुछ और ही हैं.
कैलाश पर्वत के भीतर से दुसरी दुनिया का रास्ता
कैलाश पर्वत के बारे में कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह पर्वत पहले यहाँ पर नहीं था. इन लोगों के अनुसार इस पर्वत को बनाया गया हैं. इतना ही नहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कैलाश पर्वत अंदर से खोखला हैं जिससे दुसरी दुनिया में जाने का रास्ता हैं.
कैलाश पर्वत पर अनेकों बार शोध किया गया हैं और अब तक जारी ही हैं. अलग-अलग देशों के वैज्ञानिक आकर इस पर्वत पर शोध करते रहते हैं. एक बार रूस के वैज्ञानिकों ने कैलाश पर्वत पर आकर पुरे एक महीने तक इस पर शोध किया। यह बात सन 1999 की हैं.
रूसी वैज्ञानिको के शोध से पता चला
रूसी वैज्ञानिको ने पुरे एक महीने तक कैलाश पर्वत के नीचे रह कर इसके आकार पर शोध करने के बाद दुनिया को यह बताया कि कैलाश पर्वत के जो तीनकोने आकार की चोटी है वो प्राकृतिक नहीं हैं. वैज्ञानिको के मुताबिक यह यह चोटी एक पिरामिड है जो बर्फ से ढका रहता है.
आपको बता दे कि कैलाश पर्वत को “शिव पिरामिड” के नाम से भी जाना हैं. अभी तक जो भी इंसान इस पर्वत को फ़तेह पाने निकला हैं वह या तो मारा गया हैं या तो उलटे पैर वापस लौट आया हैं.
सारे धर्म के लोगों की कैलाश को लेकर अपनी-अपनी मान्यता हैं
हिंदू धर्म के लोग कैलाश पर्वत को बहुत ही पवित्र स्थल मानते हैं. हिन्दू धर्म के अनुसार हिन्दुओं के देवता भगवान शिव यही पर विराजते हैं. हालाँकि कैलाश सिर्फ हिन्दू धर्म के लोगों के लिए ही पवित्र स्थान नहीं हैं. बल्कि यह जैन धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म के लोगों के लिए भी पवित्र स्थान हैं.
जैन धर्म के अनुसार तीर्थांकर ऋषभनाथ को कैलाश पर्वत पर ही ‘तत्व ज्ञान‘ प्राप्त हुआ था. वहीं बौद्ध अनुयायियों के अनुसार महात्मा बुद्ध महापारिनिर्माण के बाद कैलाश पर्वत पर ही रहते हैं.
इन सभी धर्मों के साथ-साथ तिब्बत के डायो धर्म के अनुयायी के लिए कैलाश पर्वत पूरी दुनिया का आध्यात्मिक केंद्र हैं. डायो धर्म तिब्बत में बौद्ध धर्म से भी पहले से हैं.
यह महज एक संजोग की बात नहीं हैं कि इतने सारे धर्म के लोग कैलाश पर्वत को एक धार्मिक जगह और पवित्र स्थान मानते हैं. इन सब धर्मों के लगभग डेढ़ अरब लोग कैलाश पर्वत को एक धर्मिक स्थल मानते हैं.
कैलाश पर्वत ने चीनी सरकार को सिखाया सबक
बात साल 1980 की है जब उस वक़्त की चीनी सरकार ने इटली के एक पर्वतारोही से गुजारिश की कि वह कैलाश पर्वत की चढ़ाई कर उसको फतह करें। बता दे कि इस पर्वतारोही का नाम ‘रेनहोल्ड मेस्नर’ था. लेकिन रेनहोल्ड मेस्नर ने चीनी सरकार की गुजारिश को खारिज करते हुए कैलाश पर्वत पर जाने से मना कर दिया।
रूसी पर्वतारोही ने कैलाश पर चढ़ने का फैसला किया
इसके घटना के बाद फिर एक रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ साल 2007 में कैलाश पर्वत पर चढ़ने की सोची। कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने का अनुभव साँझा करते हुए सर्गे ने कहा- “कुछ दूर चढ़ने पर मेरी और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा। फिर हमारे पैरों ने जवाब दे दिया। मेरे जबड़े की मांसपेशियाँ खिंचने लगी, और जीभ जम गयी। मुँह से आवाज़ निकलनी बंद हो गयी। चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि मैं इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हूँ। मैं फ़ौरन मुड़ कर उतरने लगा, तब जाकर मुझे आराम मिला। “
एक और पर्वतारोही कर्नल विल्सन ने भी इस पर्वत को फतेह करने की ठानी। लेकिन वह भी इस पर्वत को फतेह नहीं कर पाए. कर्नल कैलाश पर चढ़ाई करने के अपने अनुभव को साँझा करते हुए बताते हैं कि, “जैसे ही मुझे शिखर तक पहुँचने का थोड़ा-बहुत रास्ता दिखता था, कि बर्फ़बारी शुरू हो जाती थी। और हर बार मुझे बेस कैम्प लौटना पड़ता था। “
चीनी की कैलाश को फतेह करने की ज़िद
इन सारे घटनाओं से सबक ना सिखते हुए चीन ने एक बार फिर से अपने कुछ पर्वतारोहियों को कैलाश पर चढने के लिए कहा. चीन की इस पर्वत को फतेह करने की ज़िद को देखकर सारी दुनिया चीन के खिलाफ बोलने लगी. फिर मज़बूरन चीन को कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने के अभियान को रोकना पड़ा.
इस पर्वत पर चढ़ते ही ह्रदय परिवर्तन हो जाता हैं
ऐसा कहा जाता हैं कि जो भी कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश करता हैं उसका आधे पर्वत पर चढ़ते ही हृदय परिवर्तन हो जाता हैं. फिर वह आगे नहीं चढ़ता और वापस लौट आता हैं.
पर्वत पर चढ़ते ही बुढ़ापा आ जाता हैं
बता दे कि इस पर्वत पर चढ़ने के बाद आपके नाखून और बाल इतनी तेज़ी से बढ़ने लगते हैं कि आपको यकीन नहीं होगा। जो नाख़ून और बाल दो हफ्ते में लम्बे होते हैं वह इस पर्वत पर आने के बाद दो दिन में लम्बे हो जाते हैं. इस पर्वत पर जैसे ही आप आगे की और चढ़ाना शुरू करते आपका शरीर मुरझाने लगता हैं. चेहरे पर बुढ़ापा आने लगता हैं. इसके पीछे का कारण लोग यहाँ कि हवा और मौसम को बताते हैं.
क्यों कैलाश पर चढ़ना है मुश्किल?
8848 मीटर ऊँचा होने के बावजूद लोग तकनीक के सहारे माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ पाते हैं. मगर अभी तक कोई भी ऐसी तकनीक नहीं हैं जिसके बलवूते हम महज 6638 मीटर ऊँचा कैलाश पर्वत पर चढ़ सके. चारों और से चट्टानों और हिमखंडों से बने इस पर्वत पर चढने के लिए कोई भी रास्ता नज़र नहीं आता हैं.
बता दे कि कैलाश पर्वत आने के ही रस्ते में आपको मानसरोवर झील भी नज़र आएगा. इस झील को भी हिन्दू धर्म में पवित्र माया गया हैं. हिन्दू धर्म के मुताबिक इस झील से भगवान् शिव और पार्वती स्नान करते हैं और यह खील उनका पसंदीदा स्थान हैं. हर साल देश-विदेश से लाखों की संख्या में लोग कैलाश पर्वत की परिक्रमा करने यहाँ आते हैं. कैलाश पर्वत के साथ-साथ सब मानसरोवर से दर्शन भी करते हैं.
देश-विदेश के वैज्ञानिकों के इतने शोध के बाद भी अभी तक यह बात रहस्य ही हैं कि आखिर क्यों कोई भी अभी तक इस पर्वत की चढ़ाई पूरी नहीं कर पाया हैं.