बड़े-बड़े शहरों और वहां काम करने वाली महिलओं और एक गाँव और वहाँ काम करने वाली महिलओं में ज़मीन आसमान का फर्क होता हैं. जब आप बड़े शहरों में महिलओं को मर्दों के बाल कटते या सेव करते देखते होंगे तो आपको यह देखकर बिलकुल भी आश्चर्य या अजीब नहीं लगता होगा , आपके लिए ये कोई बड़ी बात नहीं होती हैं , लेकिन क्या आपके लिए ये तब भी बड़ी बात नहीं होगी जब आप गाँव की किसी महिला को नाई का काम करते हुए देखे . आपके लिए ये बहुत बड़ी बात होगी और आप इसे देखकर अचंभित भी जरुर होंगे . तो आज हम आपको एक ऐसी ही महिला की कहानी बताने जा रहे हैं जिनके बारे में जानकर और सुनकर आप भी आश्चर्यचकित हो उठेंगे .
पुश्तैनी काम करने की ठानी
सीतामढी के बाजपट्टी इलाके की फुलवरिया पंचायत के बसौल गाँव की निवासी सुखचैन देवी, 55 साल की हैं .इनकी शादी 16 साल पहले पतदौरा गाँव में हुई . दो बेटों और एक बेटी की माँ सुखचैन देवी के पति रमेश की मृत्यु के बाद बच्चों के सारी ज़िम्मेदारी उनके कंधो पर आ गई . ससुराल में भी उनके पास खुद की कोई ज़मीं नहीं थी, तो वापस मायके आ गई . पति रमेश चंडीगढ़ में बिजली मिस्त्री का काम करते थे , जिससे परिवार का गुजरा मुश्किल से होता था. उनके गुजर जाने के बाद परिवार का गुजरा चलाना और भी मुश्किल हो गया . जिसके बाद सुखचैन देवी ने अपना पुश्तैनी काम करने की ठानी.
घर-घर जाकर दाढ़ी बनाती है यह महिला
सामाजिक विचारों और रूढ़िवादी सोच को दरकिनार कर सुखचैन देवी ने नाई का काम करने की ठानी . यह काम उनके लिए बिल्कुल भी आशन नहीं था, क्युकि गाँव में आज भी लोंगो की सोच महिलाओं के प्रती ज्यादा बदली नहीं हैं.गाँवों में लोग आज भी महिलाओं को घर के भीतर चूल्हा चौंका करते ही पसंद करते हैं। ऐसे में यह काम सुख चैन देवी के लिए बेहद ही चुनौती भरा था। शुरूआता में लोग उनसे दाढी-बाल बनवाने में हिचकता थे।
गाँवों में लोग आज भी महिलाओं को घर के भीतर चूल्हा चौंका करते ही पसंद करते हैं। ऐसे में यह काम सुखचैन देवी के लिए बेहद ही चुनौती भरा था। शुरूआत में लोग उनसे दाढी-बाल बनवाने में हिचकिचाते थे। क्योंकि वह अपने पति के मरने के बाद अपने मायके में ही रहती थी और वहीं पर उन्होंने यह काम करने की सोची इसलिए उन्हें अपनी बहन और बेटी मानने वालों ने उनसे यह काम करवाना शुरू कर दिया ।
धीरे- धीरे उनके प्रती लोगों की सोच बदली
धीरे-धीरे लोगों की हिचक दूर होती गई और गाँव वाले उनसे बाल और दाढी बनवाने लगें। अब उनके प्रती लोगों की सोच बदली है। अब वो सुबह कंघा, कैची और उस्तरा लेकर गाँव में निकल जाती हैं । गाँव में घूम घूम कर लोगों के बाल बनाती हैं और घर पर बुलाने पर घर भी जाती हैं।
बच्चों के साथ-साथ माँ की भी जिम्मेदारी हैं कन्धों पर
सुख चैन देवी दिन के 200 रूपये काम लेती हैं । जिससे वो अपने बच्चों के पालन-पोषण के साथ-साथ माँ की भी देखभाल करती हैं . आपको बता दे की यह काम सुखचैन देवी ने किसी से सीखा नहीं हैं, चुकीं सुखचैन देवी जन्म एक नाई के परिवार में हुआ था, तो जब उनके बचपन में उनके पापा नाई काम काम करने जाते थे तो उन्हें भी साथ ले जाते थे. तभी से सुखचैन देवी ने यह काम अपने पिता को करते देख कर सिखा लिया.
शादी से पहले बच्चों के बाल कटती थी सुखचैन
जब सुखचैन बड़ी हुई तो मायके में वो बच्चों के बाल काटती थी, लेकिन शादी के बाद उनका कैंची से रिश्ता टूट गया. लेकिन जब उनपर मुसीबत आफत बन कर टूट पड़ी तो फिर इसी कैंची ने उनका साथ निभाया और उनके पालन -पोषण का सहारा बना. सुखचैन दुबारा कैंची अपने तीन बच्चों की पढाई और गरीबी से परिवार को निकालने के लिए उठाया.
सुखचैन कहती है कि पहले आस-परोस में शादी व्याह के मौके पर लोंगो के घर में महिलओं के नाखून और बाल काटने से लेकर दुसरे काम भी करती थी. बाद में पुरुषों के भी काम करने लगीं. ट्रेनिंग का मौका और साधन मिले तो ब्यूटी परलाल खोल लूंगी. आगे वह कहती है टीम बच्चे पढ़-लिख सके, यही कोशिश हैं.